Sunday 14 December 2014

बाल कहानी : खाली गिलास


सवेरे का समय था, बलवान चाय वाले की दूकान पर काफी भीड़ थी रोज की तरह. वहीँ काम करता था रमुआ. उसका काम था झूठे गिलास धोना, टेबल पर कपडा मारते रहना और आस पास की दुकानों में  चाय दे कर आना. उसका कोई नहीं था इसलिये बलवान को ही बापू कहता था. वैसे बलवान उसका कौन था, यह बात उसे मालूम नहीं थी. पर उसने बलवान को कई बार ग्राहकों से इस बारे में  कहते सुना था. वह कहता था – “अरे साहब क्या बताऊँ रमुआ की कहानी. यह तो मुझे सड़क पर रोता हुआ मिला था.
“बस मुझे दया आ गयी और मैं इसे साथ ले आया. कई बरस हो गए तब से इसे अपने बेटे की तरह पाल रहा हूँ.” सुनने वाले बलवान की तारीफ़ करते और चाय पीकर चले जाते. इस बीच वह सर झुकाए काम में  लगा रहता. उसे अच्छी तरह पता था कि जरा हाथ रुके नहीं कि आफत आ जाएगी. बलवान के प्यार का कड़वा  सच उसे खूब मालूम था. बात बेबात रमुआ के गाल लाल करने में बलवान को जैसे मज़ा आता था. उसकी आँखों  में आंसू आते और सूख़ जाते, वह किस से अपना दुःख कहता, कहाँ जाता.
हर दिन एक ही ढंग से बीतता था. रात को चाय की दुकान बंद होने का कोई समय नहीं था, जब तक ग्राहक आते रहते दुकान चलती रहती, और रमुआ के हाथ और पैर भी काम में लगे रहते. वह जरा भी ढिलाई नहीं कर सकता था, फिर चाहे भूख लगी हो या सर दुःख रहा हो उसे छुटकारा नहीं मिलता था. एक दिन उसने भूख लगने की बात कह दी तो जोर का तमाचा गाल पर पड़ा था, एक भद्दी गाली सुनने को मिली थी. उस दिन बलवान ने साफ़ कह दिया था कि खाना दुकान का काम पूरा होने के बाद ही मिलेगा. रमुआ को पता चल गया था कि क्या बात बलवान से नहीं कहनी है. मतलब यह कि जब बलवान दे तभी खाना है, और जब छुट्टी दे तभी मेज कुर्सियों के बीच नंगी जमीन पर लेट जाना है.
दो दिन से उसे नींद नहीं आ रही है, सर मैं दर्द होता रहता है. सुबह दूध वाला आकर शटर बजाता है तो रमुआ अंदर से शटर उठा कर दूध ले लेता है. यह रोज का नियम है. दूध वाला सुबह बहुत जल्दी आ जाता है, तब तक दिन भी नहीं निकला होता है पर रमुआ का काम तभी से शुरू हो जाता है. उस दिन रमुआ को शटर उठाने में देर हो गई, पूरे बदन में  दर्द हो रहा था. उसे बुखार था. दूध वाले ने बलवान से देरी की शिकायत कर दी. फिर तो आफत ही आ गई, बलवान ने चांटों से उसके गाल लाल कर दिए. पर यह नहीं पूछा कि उठने में  देर क्यों हुई थी. रमुआ ने बुखार के बारे में  कुछ नहीं कहा, कहने से कुछ फायदा भी नहीं था, बुखार कोई पहली बार नहीं हुआ था. मार खाकर वह  काम में लग गया. पर काम में रोज जैसी फुर्ती नहीं थी. चाय बनाने वाले मुन्ना ने उसका हाथ छूकर देखा तो चोंक कर बोला- “ अरे, तुझे तो तेज बुखार है!” पर वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सका, क्योंकि बलवान उधर ही देख रहा था. मुन्ना को भी बलवान के गुस्से के बारे में खूब अच्छी तरह पता था. रमुआ की हिमायत लेकर उसे अपनी मुसीबत नहीं बुलानी थी.
ग्राहक चाय-नाश्ते का मज़ा ले रहे थे, इस बीच रमुआ बाज़ार में भी कई बार चाय दे आया था, उसका मन कर रहा था कि गरमागरम चाय पी ले तो शायद तबीयत कुछ ठीक हो जाये, लेकिन पी नहीं सकता था. तभी बलवान ने बाज़ार में चाय दे आने को कहा. वह चाय का गिलास लेकर चल दिया, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था. आगे एक आदमी चबूतरे पर बैठा अखबार पढ़ रहा था, वह रमुआ को जानता था, उसे बलवान की दुकान पर लट्टू की तरह घूमते देखा था. उसने भी रमुआ के बारे में बलवान के मुंह से खुद की तारीफ कई बार सुनी थी, उसने रमुआ को डगमगाते आते देखा तो पुकार लिया – “सुन तो.” फिर बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया. चोंक कर बोला- “ तुझे तो तेज बुखार है,रो क्यों रहा है? चाय पी? ‘
रमुआ ने इनकार में सर हिला दिया, और जोर से रो पड़ा, उस आदमी ने चाय का गिलास रमुआ के हाथ से ले लिया, फिर बोला-“ यहाँ बैठ और चाय पी ले, “
रमुआ ने रोते हुए कहा –“ मार पडेगी.”
उस आदमी ने कहा-“ कोई नहीं मारेगा ,तू चाय पी ले, फिर मैं तुझे अपने साथ ले जाकर दवा दिलवा दूंगा.”
रमुआ चुप बैठा रोता रहा पर उसने चाय नहीं पी, उसे अच्छी तरह पता था कि इसके बाद बलवान उसके साथ क्या करेगा. उस आदमी ने रमुआ के सर पर हाथ फिराया,बोला-“ तू आराम से चाय पी फिर मैं तुझे डॉक्टर के पास ले चलूँगा, अब बलवान के पास जाने की कोई जरुरत नहीं. “
रमुआ एकटक उस की ओर देखता रहा, उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था.
......
दुकान पर बलवान ने रमुआ को पुकारा तो मुन्ना ने कहा-‘ वह तो चाय देकर लौटा  ही नहीं है.”
सुनते ही बलवान  आग बबूला हो गया, मुन्ना से बोला-“ उसे पकड़ कर तो ला जरा, आज उसकी हड्डियाँ अच्छी तरह नरम करूंगा, तभी अक्ल ठिकाने होगी उसकी.”
मुन्ना समझ गया कि आज रमुआ की खैर नहीं, उसने सब जगह देख डाला, पर रमुआ कहीं नहीं था. एक दुकान के चबूतरे पर चाय का खाली  गिलास रखा था. पर चाय का खाली गिलास रमुआ के बारे में कुछ कहने वाला नहीं था.
 


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