छड़ी कबूतर—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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अनुज दोपहर में दो बजे स्कूल से लौटता है। आते ही माँ गरम भोजन परोस
कर कहती हैं –खाकर
कुछ देर आराम कर ले, फिर उसे ट्यूशन पर जाना होता है- ठीक चार बजे। इस दिनचर्या से रविवार
को ही छुटकारा मिलता है। भोजन के बाद अनुज जैसे जबरदस्ती लेट जाता है। कभी नींद लग
जाती है तो कभी इसी सोच में समय बीत जाता है कि रविवार के दिन दोस्तों के साथ कैसे
मस्ती करेगा।
इधर एक नई परेशानी खड़ी हो गई है कबूतरों की। जिस कमरे में अनुज खाना
खा कर आराम करता है, उसकी छत का कुछ प्लास्टर गिर गया है। वहां मरम्मत हो रही है, इसलिए अनुज को दूसरे कमरे में जाना पड़ा
, लेकिन पहले ही दिन कबूतरों की गुटर गूं और
पंखों की फड़ फड़ के शोर ने उसे परेशान कर दिया।
कबूतर कमरे के बाहर बालकनी में शोर कर रहे थे। अनुज लेटा न रह सका। उठ कर
बालकनी का दरवाजा खोला तो कबूतर उड़ गए। अनुज ने सोचा—कबूतर अब नहीं आएंगे, लेकिन थोड़ी देर बाद ही गुटरगूं और
पंखों की फड़ फड़ फिर सुनाई देने लगी। अनुज ने दरवाज़ा खोला तो कबूतर उड़ गए। कबूतरों
और अनुज के बीच यह लुका छिपी इतनी बार हुई कि वह थक कर दूसरे कमरे में चला गया,तब तक ट्यूशन पर जाने का समय हो गया।
दूसरी दोपहर भी कबूतरों ने वही किया जो वे न जाने कब से करते आ रहे
थे। अनुज ने जैसे ही बालकनी का दरवाजा खोला कबूतर फड़ फड़ करते उड़ गए, लेकिन पिछले दिन की तरह फिर लौट आये।
आखिर अनुज को उठ कर बालकनी में जाना ही पड़ा। अब कबूतर उड़ गए। जितनी देर वह बालकनी
में खडा रहा कबूतर नहीं आये, लेकिन जैसे ही अन्दर लौटा, उसके कुछ देर बाद ही पंखों की फड़ फड़ फिर शुरू
हो गई। अनुज समझ नहीं पाया कि इस मुश्किल से छुटकारा कैसे मिले। आखिर वह उसी कमरे
में चला आया जहां छत की मरम्मत हो रही थी।
माँ ने पूछा—‘क्या हुआ?’
‘कबूतर परेशान कर रहे हैं।’—अनुज ने बताया तो माँ हंसने लगीं—‘ कबूतर तो शोर करते ही हैं। तुम आँखें
बंद करके लेटो तो नींद आ जायेगी।’
‘
मैं
भी परेशान करूंगा शैतान कबूतरों को।’ –अनुज ने गुस्से से कहा और ट्यूशन के लिए चला
गया। उसने कह तो दिया लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि कबूतरों को उनकी शैतानी के
लिए क्या और कैसे सजा दे। जब वह घर लौटा तो शाम ढल चुकी थी। वह सीधा बालकनी में
गया। वहाँ सन्नाटा था, कबूतर कहीं नहीं थे। उसने चैन महसूस किया।तभी उसकी नजर एक तरफ पड़ी
बांस की पतली छड़ी पर गई। अनुज ने तुरंत उसे उठा लिया। कुछ पल सोचता रहा फिर उसे
हवा में इधर उधर घुमाने लगा।
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अगली दोपहर अनुज ने बालकनी के पल्ले खोलकर पर्दा डाल दिया। फिर उसके
पीछे छिप कर खड़ा हो गया। वहां से छज्जे की रेलिंग दिखाई दे रही थी। उसने बांस की
छड़ी को मजबूती से थामा हुआ था,अनुज ने सोच लिया था कि जैसे ही कबूतर छज्जे की रेलिंग पर उतरेंगे वह
छड़ी से वार करेगा। किसी न किसी कबूतर को तो जरूर चोट लगेगी। अगर दो तीन बार ऐसा
हुआ तो शैतान कबूतर इधर आने की भूल नहीं करेंगे।
लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ जैसा अनुज ने सोचा था। जैसे ही कबूतर रेलिंग पर
उतरे अनुज ने छड़ी से वार किया लेकिन शायद किसी कबूतर को छड़ी की चोट नहीं लगी।
क्योंकि कबूतर फिर लौट आये। अनुज ने कई बार छड़ी से वार किया लेकिन कोई असर नहीं
हुआ। क्योकि थोड़ी देर बाद शैतान कबूतर फिर लौट आते थे। बस छड़ी हर बार रेलिंग से
टकरा कर रह जाती थी।
परेशान होकर अनुज बालकनी में निकल आया। हाथ की छड़ी हिलाते हुए वह इधर
उधर देखने लगा। उसका प्लान फेल हो गया था। शैतान कबूतर जीत गए थे। अब क्या करे? कुछ पल इसी तरह खड़े रहने के बाद वह
कमरे में जाने के लिए मुड़ने लगा तो किसी की हंसी सुनाई दी। उसने आवाज़ की दिशा में
देखा तो सामने वाले ब्लाक के फ़्लैट की खिड़की में एक लड़का दिखाई दिया। वही हंस रहा
था। नजर मिलते ही उसने कहा—‘ तुम्हारी छड़ी कबूतरों का कुछ नहीं कर सकती। हाँ
मेरे पास एक तरकीब है।’
‘
कैसी
तरकीब?’—अनुज ने पूछ लिया। आखिर कौन था वह
लड्का और उसे क्यों देख रहा था!
जवाब में उस लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर दिखाया।उसके हाथ में एक
गुलेल थी।
‘
गुलेल
से क्या करोगे?’—अनुज ने पूछा।
‘
गुलेल
से निशाना लगाऊंगा तो किसी न किसी कबूतर को जरूर चोट लगेगी। फिर वे कभी तुम्हारी
बालकनी की तरफ नहीं आयेंगे।’—उस लड़के ने कहा।
अनुज ने हडबडा कर कहा—‘ अरे नहीं नहीं , ऐसा मत करना। गुलेल की चोट से
कबूतर घायल हो सकते हैं, शायद कोई मर भी जाए।’
‘
तो
फिर कबूतर तुम्हें परेशान करना बंद नहीं करेंगे। तुम अपनी छड़ी से चाहे कितने भी
वार क्यों न करो ,कबूतरों का कुछ नहीं बिगाड़ सकोगे,’—उस लड़के ने कहा। ‘इन शैतानों को गुलेल से ही भगाया जा
सकता है।’
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‘
रुको
अभी गुलेल मत चलाना।’—अनुज ने कहा। वह कुछ घबरा गया था। कबूतरों पर गुलेल से वार करना ठीक
नहीं होगा. उस लड़के को गुलेल चलाने से रोकना होगा। यह ठीक है कि वह कबूतरों के शोर
से परेशान था लेकिन गुलेल से कबूतरों को चोट पहुंचाने की तो सोच भी नहीं सकता था।
उसने लड़के का नाम और फ़्लैट नम्बर पूछ लिया। वह तुरंत उससे मिलकर मना करना चाहता था। चलने से पहले उसने एक किताब ले ली।
अनुज के जन्मदिन पर उसके मामाजी ने पुस्तकें उपहार में दी थीं। उसके पापा कहते थे –किसी के घर खाली हाथ कभी न जाओ।उस लड़के
का नाम अजय था।
फ़्लैट का दरवाज़ा अजय की मम्मी ने खोला। अजय खिड़की के सामने बैठा था।
उसके पैर पर पट्टी बंधी थी। उसने बताया कि फिसल कर गिरने से चोट लग गई थी। अब पहले
से ठीक है। पास ही गुलेल रखी थी। अनुज ने
उसे किताब दी। कहा –‘ मेरे जन्म दिन पर मामाजी ने उपहार में दी हैं
कई पुस्तकें।’ अजय किताब उलटपलट कर देखने लगा। इतने में अनुज ने गुलेल उठा ली। वहां
से अपने फ़्लैट की बालकनी और रेलिंग पर बैठे कबूतर दिखाई दे रहे थे। अजय बोला—‘देखो यहाँ से कबूतरों को आसानी से
निशाना बनाया जा सकता है।’
अनुज ने अपने मन की बात कह दी—‘ मैं यही कहने आया हूँ कि कबूतरों पर गुलेल मत
चलाना। ’
‘लेकिन… ’
‘
कबूतरों
को चोट पहुंचाना ठीक नहीं। हाँ यह तो बताओ तुमने गुलेल कब खरीदी?’
‘’
मैंने
नहीं खरीदी मेरे मामाजी ने दी थी।’—अजय ने बताया।
अनुज ने कुछ सोचा फिर बोला –‘मैंने तुम्हें किताब दी है। क्या तुम मुझे कुछ नहीं दोगे?’
‘क्या दे सकता हूँ मैं?’ – अजय पूछ रहा था।
‘
गुलेल।’—अनुज ने कहा।
‘
गुलेल
किसलिए? तुम क्या करोगे इसका?’ –अजय ने अचरज से पूछा और गुलेल अनुज को
थमा दी।
‘
कुछ
तो जरूर करूंगा लेकिन अभी नहीं बता सकता।’।—अनुज ने कहा और मुस्करा उठा। ‘वादा करो कि गुलेल को वापस नहीं मांगोगे और
दूसरी खरीदोगे भी नहीं।’
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‘
तो
तुम भी यह किताब वापस मत लेना।’—अजय ने कहा और मुस्कराने लगा।
‘
यह
किताब तो तुम्हारे लिए लाया हूँ। अगली बार और पुस्तकें लेकर आऊंगा। मेरे पापा पढने
के शौकीन हैं। वह मेरे लिए नई नई किताबें लाते रहते हैं। मेरे पास भी बहुत किताबें
जमा हो गई हैं। कभी आओ तो दिखाऊंगा, पढने को भी दे सकता हूँ।’—अनुज बोला। यह कहते हुए उसकी आँखें
अपनी बालकनी पर टिकी थीं।वहां कई कबूतर रेलिंग पर बैठे थे। बार बार उड़ते और फिर
लौट आते। सचमुच अजय की खिड़की से कबूतरों को गुलेल से निशाना बनाया जा सकता था।
लेकिन वह ऐसा कभी नहीं होने देगा।
अजय ने कहा—‘ पैर की चोट ठीक होने पर जरूर आऊंगा। तब
देखूंगा तुम्हारी पुस्तकें।’
कुछ देर बाद अनुज वहां से चला आया। अपने घर की ओर बढ़ते हुए उसने
गुलेल का रबर निकाल कर फेंक दिया, फिर गुलेल भी नाली में डाल दी। गुलेल पानी में खो गई। घर लौट कर सीधा बालकनी
में गया। वहां गुटर गूं करते कबूतर तुरंत उड़ गए। वह मुस्करा कर अजय के फ़्लैट की ओर
देखने लगा,
वहां
कोई नहीं था। उसे उम्मीद थी कि चोट ठीक होने पर अजय किताबों से मिलने आएगा। कुछ
देर बाद कबूतर फिर लौट आये थे।अनुज ने दरवाज़ा खोल कर कबूतरों को भगाने की कोशिश
नहीं की। माँ उसे समझाती हैं – ‘कबूतर जो करते हैं वही करेंगे ,तुम अपना काम करो।‘ अनुज ने पापा से
मिली नई किताब खोल ली, बाहर बालकनी में गुटर गूं हो रही थी। ( समाप्त )