Wednesday 18 July 2018

कोई तो मदद करो --देवेन्द्र कुमार-- बाल कहानी



 कोई तो मदद करो           

                                                                                      --देवेन्द्र कुमार --बाल कहानी

क्या वह पागल था? पता नहीं ,पर आस पास खड़े लोग तो ऐसा ही कह रहे थे. क्या इसीलिए उसे रोता देख लोग उसकी खिल्ली उडा रहे थे. आखिर सच क्या था?

सड़क पर जाम लगा था. ग्लोरी स्कूल की बस को रुकना पड़ा. बस से आगे कई कारें और स्कूटर हॉर्न बजा रहे थे. सड़क के बीचोबीच कई लोग खड़े थे. न जाने क्यों  वे हंस रहे थे लेकिन  हंसी के बीच किसी के रोने की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी. आखिर मामला क्या था?
अजय और शिवम् बस से उतर कर वहां जमा लोगों के बीच जा पहुंचे. उन्होंने देखा भीड़ के बीच एक बूढा सड़क पर बैठा था. वह रो रहा था लेकिन लोग हंस रहे थे. उसके हाथ में एक डंडा था,जिस पर लगे पोस्टर पर बड़े - बड़े शब्दों  में लिखा था—‘’ मेरा बेटा खो गया है. उसे खोजने में मदद करो.’  तभी एक सिपाही वहां आ पहुंचा. उसने बूढ़े को पकड़ कर उठाया और फुटपाथ पर बैठा दिया फिर ट्रेफिक को संचालित करने लगा. अजय और शिवम् भी स्कूल बस में जा बैठे. उन्होने देखा कई लोगों ने उस बूढ़े को फिर से घेर लिया था. तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और बूढ़े के हाथ से पोस्टर छीन कर भाग गया.इसके बाद क्या हुआ अजय और शिवम् नहीं देख पाए,क्योकि बस आगे बढ़ गई थी.
शिवम् ने अजय से कहा—‘ पता नहीं वह कौन था जो बूढ़े बाबा का पोस्टर लेकर भाग गया. पता नहीं अब वह अपने खोये हुए बेटे को कैसे खोजेंगे!’
        ‘’पता नहीं उनका बेटा कैसे खो गया.’—अजय ने कहा. शिवम् ने जवाब नहीं दिया. वह कुछ सोच रहा था. घर पहुँच कर उसने अपनी माँ सुषमा से पोस्टर वाले बूढ़े बाबा के बारे में बताया तो वह मुस्करा कर बोलीं –वही बूढा जिसका बेटा खो गया है,जो सड़क के मोड़ पर फल बेचने वालों के पास खड़ा दिखाई देता है.’’
        ‘’तो आप जानती हैं उसके बारे में –पर कैसे?’’
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          ‘’मैं तुम्हारे पापा के साथ वहां फल-फ्रूट लेने जाती रहती हूँ. बूढ़े को पोस्टर लिए हुए मैंने कई बार देखा है. लोगों को उन्हें पागल-सिरफिरा कहते भी सुना है. मेरे पूछने पर एक ने बताया कि बूढ़े का नाम श्यामू है. वह भी पहले वहीँ फल बेचा करता था. साथ में उसका बेटा चीतल भी खड़ा रहता था, पर वह शरारती था. वह पिता की काम में जरा भी मदद नहीं करता था. एक दिन मैं वहां गई तो देखा श्यामू का ठेला उल्टा पड़ा है और सारे फल सड़क पर फैले हुए हैं. श्यामू एक तरफ सिर थामे बैठा था.
        ‘’ क्या हुआ था?’
         लोगों ने बताया –एक लड़की गुब्बारे लेकर माँ के साथ जा रही थी. चीतल उसके गुब्बारे छीन कर भाग गया. लड़की रोती हुई उसके पीछे दौड़ी तो गिर कर चोट खा गई. इस पर श्यामू ने उसे पीट दिया. गुस्से में चीतल ने फलों का ठेला उलट दिया और भाग गया. यह कई महीने पहले की बात है. सुना है तभी से चीतल घर नहीं लौटा है. श्यामू और उसकी पत्नी परेशान घूम रहे हैं. सब श्यामू को दोष दे रहे हैं कि उसे चीतल को पीटना नहीं चाहिए था. चीतल के न लौटने से जैसे श्यामू पागल सा हो गया है. सबसे पूछता फिरता है—चीतल कहाँ है? मैं उसका कसूरवार हूँ.
          ‘’हाँ मैंने भी देखा था कि वह हाथ में पोस्टर लिए सड़क पर बैठा था. वह रो रहा था और लोग हंस रहे थे.’’—शिवम् ने माँ से कहा. फिर एक बड़ी ड्राइंग शीट लेकर मोटे पेन से लिखने लगा-
       माँ ने पूछा तो उसने कहा—सुबह एक लड़का चीतल के पिता के हाथ से पोस्टर छीन कर भाग गया,इसीलिए मैंने नया पोस्टर तैयार किया है .सोचता हूँ जाकर उन्हें दे दूं ‘. माँ ने कहा—‘मुझे बजार से कुछ सामान लाना है,मैं भी चलती हूँ.’
          सुषमा और शिवम् बाज़ार पहुंचे तो श्यामू लोगों के बीच खड़ा दिखाई दिया.वह् तेज़ स्वर में कुछ कह रहा था. शिवम् ने उससे कहा—‘’बाबा,कोई आपका पोस्टर छीन कर ले गया था, मैंने नया पोस्टर बना दिया है.’’ और डंडे  पर लगा पोस्टर उसे थमा दिया.
            ‘’बच्चे, अब इसकी कोई जरूरत नहीं है,मेरा चीतल लौट आया है. चलो मेरे साथ ,उससे मिलो.’’ –कह कर श्यामू एक तरफ चल दिया.शिवम् ने देखा, कुछ आगे फुटपाथ पर एक लड़का लेटा  था गर्दन तक चादर ओढ़े हुए. उसकी आँखें बंद थीं.पास में बैठी एक औरत उसके माथे पर गीली पट्टी रख रही थी.साथ ही आंसू भी पोंछती जा रही थी. सुषमा ने पूछा – ‘’अम्मा,चीतल कैसा है,यह कहाँ चला गया था?’’
         ‘’ यह तो मेरा चीतल नहीं है.’’
         ‘’तो फिर यह कौन है?’’
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चीतल की माँ ने आंसू पोंछते हुए कहा—‘क्या पता चीतल के बापू किसे उठा लाये हैं! मैंने तो साफ़ कह दिया था कि मेरे घर में चीतल के अलावा दूसरा कोई  नहीं रह सकता. तब गुस्से में इसे लेकर यहाँ चले आये. कहा कि  जहाँ उनका चीतल नहीं रह सकता वहां वह भी नहीं रहेंगे. फिर मुझे पता चला कि यह बच्चा बुखार में फुट पाथ पर लेटा है. आखिर मुझे देख भाल के लिए आना ही पड़ा.’’
‘तो चीतल का कुछ पता चला?’
‘’पता नहीं मेरा बेटा कहाँ चला गया.’’
श्यामू इस समय वहां दिखाई नहीं दे रहा था. सुषमा ने फुट पाथ पर लेटे लड़के का माथा  छू कर देखा. उसे तेज़ बुखार था.शिवम् से आँखें मिली तो वह धीरे से मुस्कराया. ‘’तुम्हारा नाम क्या है?’’—शिवम् ने पूछा.
 ‘’रमन .’’
‘तुम यहाँ कैसे आ गये ?’
रमन ने बताया—‘ मैं थोड़ी दूर पर एक स्टोर में काम करता था. आज मुझे बुखार था,इसलिए देर से दुकान पहुंचा तो मालिक ने काम से निकाल दिया. मैंने बुखार होने की बात कही पर उसने एक न सुनी. मुझे पगार का बकाया भी नहीं दिया. मैं यहाँ आकर पटरी पर लेट गया. तभी ये बाबा आ गए. मेरे लिये दवा लाए, खाने को दिया. फिर ये अम्मा आकर मेरा सर दबाने लगी.’’कह कर वह हांफने लगा.
अब बात समझ में आ गई थी. श्यामू उसे अपना खोया हुआ बेटा समझ रहा था. क्या उसके अजीब व्यवहार के कारण ही लोग उसे सिरफिरा कहने लगे थे.
तभी आकाश में बादल घिर आये .बिजली चमकने लगी. फिर बूँदें पड़ने लगी. श्यामू और उसकी पत्नी रमन को सहारा देते हुए ले चले. निश्चय ही वे उसे अपने घर ले जा रहे थे. सुषमा भी शुभम के साथ घर लौट आईं ‘’माँ,इस समय चीतल कहाँ होगा?’—शुभम ने आकाश की ओर देखते हुए पूछा.
‘’  अच्छा हो वह माँ-बाप के पास लौट आये. देखो न मौसम कितना खराब है.’’—सुषमा ने शिवम् का सिर सहला कर कहा. ‘’आप और पापा मुझे कितना प्यार करते हैं.चीतल के माता पिता भी तो आप जैसे होंगे.’—शिवम ने कहा.
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सभी बच्चों के मम्मी-पापा ऐसे ही होते हैं.’’—कहते हुए माँ ने बेटे को आलिंगन में बाँध लिया.बाहर बारिश तेज हो गई थी.                               ( समाप्त )



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