Monday 15 August 2016

आम का स्वाद



तरह –तरह के आम और उनका अलग- अलग स्वाद. लेकिन उस आम का स्वाद एकदम अलग था जिसे अजय पेड़ से तोड़ कर खाना चाहता था. कैसा था वह आम! 
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‘‘ अजय  आज घर पर ही रहना। अपने दोस्तों के साथ खेलने मत जाना। दादी अकेली हैं, उनका ध्यान रखना।’’ कहकर अजय के पापा अविनाश बाहर चले गए।
  अजय को पता था कि आज मम्मी अस्पताल गई हैं। पापा कह रहे हैं --जल्दी ही अच्छी खबर सुनने को मिलेगी। वह खबर क्या होगी इसे अजय समझता है। मम्मी अस्पताल से बेबी लेकर आएंगी-भैया या बहन कोई भी। वह तो ठीक है, पर दादी के साथ घर में रहना। भला यह भी कोई बात हुई।
  दोपहर का समय, गरम हवा चल रही है। पर यह आमों का मौसम है। उसका मन है कि आमों के बगीचे में जाकर ताजे तोड़े गए आम का स्वाद ले, पर पापा का आदेश था । वह मन मारकर दादी के पास बैठा रहा।
  अजय के पिता अविनाश छोटे से रेलवे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर हैं। स्टेशन के पास ही उन्हें रहने के लिए क्वार्टर मिला हुआ था। शहर वहां से दूर है। रेलवे क्वार्टरों के पास ही खेत और आमों का बगीचा है। अजय पढ़ने के लिए बस द्वारा शहर के स्कूल में जाता है। वह बैठा-बैठा दादी की ओर देख रहा था, जो ऊंघ रही थीं। तभी उसने खिड़की के बाहर अपने दोस्त नितिन को इशारा करते देखा-वह बाहर बुला रहा था। अजय ने देखा दादी नींद में थीं।वह चुपचाप बाहर चला गया। बाहर नितिन के साथ और भी कई दोस्त खड़े थे। अजय, नितिन और बाकी लड़के शहर के उसी स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे।
  नितिन ने कहा-‘‘अजय,चलो बाग में। यह तो आमों का मौसम है।’’
  अजय ने कहा-‘‘पिताजी आज सवेरे ही आमों का टोकरा लाए हैं।’’
  नितिन मुस्कराकर बोला-‘‘धत् पागल। मुझे भी पता है आम बाजार में मिलते हैं पर पेड़ से तोड़कर आम खाने का अपना ही मजा है। आओ चलो।’’
  अजय को पिता की चेतावनी याद आ रही थी, पर अपने हाथ से तोड़े गए आमों का स्वाद उसे अपनी ओर बुला रहा था। वह सोचता जा रहा था कि अगर इसी बीच पिता आ गए तो उनसे क्या कहेगा। पर आमों के बगीचे में पहुंचते ही वह सब कुछ भूल गया। सब बच्चे आम तोड़ने में लग गए। बगिया का रखवाला रामभज उन्हें रोकने के लिए दौड़ा आता था, पर आज तो वह कहीं नजर ही नहीं आ रहा था।
  बच्चे ताक-ताककर डालियों से झूलते आमों को अपने ढेलों से निशाना बनाने लगे। कभी निशाना आम पर लगता तो कभी पत्थरों की चोट से टहनियां और पत्ते नीचे आ गिरते। यह पहले से ही तय था कि जिसके पत्थर की चोट से जो आम गिरेगा वह उसी का होगा। पेड़ पर ढेलेबाजी का यह खेल चलता रहा।
1


बीच-बीच में लड़के बगिया के रखवाले रामभज पर भी नजर रख रहे थे। उनमें से एक लड़का दूर से देख रहा था ताकि अगर रखवाला आता दिखाई दे अपने साथियों को चेतावनी दे सके।
  अब अजय की बारी थी। उसने एक आम का निशाना ताक कर पत्थर उछाला, तभी दूर से पिता की आवाज सुनाई दी-‘‘अजय, ओ अजय,कहां घूम रहा है धूप में।’’ अजय घबरा गया। बोला-‘‘मैं चला...’’
   लड़कों ने पुकारा-‘‘अपना आम तो लेता जा, फिर दूसरी आवाज आई-‘‘अरे यह तो आम नहीं कुछ और है-एक घोंसला।’’
   सुनकर अजय का जी धक् रह गया, पर अब वापस जाकर देखने का समय नहीं था। उसने पिता को  सामने से आते देख लिया था। तेजी से  दौड़ता हुआ पिता के पास आ पहुंचा।
     अविनाथ ने कहा-‘‘हांफ क्यों रहे हो । चलो, घर में चलो। देखो चेहरा कितना लाल पड़ गया है और पसीना भी खूब आ रहा है।’’ वह अजय का हाथ पकड़कर घर में ले गए। दादी ने देखा तो पूछने लगी-‘‘कहां चला गया था इतनी धूप में?’’
     अजय को किसी की कोई बात नहीं सुनाई दे रही थी। बस कानों में वही शब्द गूंज रहे थे, ‘‘अरे, यह तो आम नहीं कुछ और है-एक घोंसला।’’
     पिता ने कहा-‘‘मैंने जाने से मना किया था फिर भी तुम दादी को अकेली छोड़कर चले गए थे। क्यों?’’
    दादी ने हंसकर अजय का गोद में भर लिया, माथा चूमती हुई बोलीं-‘‘देख तो सारा बदन कैसे गरम हो रहा है। चल अब आराम से बैठ।’’
    पिता ने अजय से कहा-‘‘तुम्हारे आमों के चक्कर में एक खुशखबरी देना तो भूल ही गया।’’ दादी ने अजय का सिर थपकते हुए कहा-‘‘तुम बहन के भाई बन गए हो।’’ और हंस पड़ीं।
   ‘‘हां, अजय बधाई। मैं अस्पताल जा रहा हूं। चलो तुम भी अपनी नन्ही मुन्ही बहन से मिल लेना।’’
    अजय के होंठों पर हंसी आ गई। उसने कसकर पिता का हाथ चूम लिया। मन में खुशी की लहर दौड़ रही थी-लेकिन एक आवाज़ अब भी कानों में गूंज रही थी-‘‘अरे,यह तो आम नहीं कुछ और है-‘‘घोंसला।’’ वह पिता के स्कूटर पर पीछे बैठकर अस्पताल की ओर जा रहा था।  वही आवाज लगातार गूंज रही थी.
2
कानों में-आम नहीं, घोंसला। हां उसने जो पत्थर आम तोड़ने के लिए फेंका था, वह एक घोंसले पर
    अविनाश अजय का हाथ पकड़कर पत्नी रमा के पास ले गए। रमा ने पास एक नन्ही मुन्नी सो रही थी। अजय को देखते ही रमा मुस्कराई और अजय को अपने पास आने का संकेत किया। बोली --अपनी बहन   को नहीं देखेगा। यह कैसा चेहरा बना रखा है।’’
   अजय ने नन्ही मुन्नी बहन को देखा। मन में खुशी भर गई, पर फिर चेहरा उदास हो गया। कानों में कोई कह रहा था-तेरा पत्थर आम को नहीं, घोंसले पर लगा था और...
  वह लगातार एक ही बात सोच रहा था, कैसे जल्दी से जल्दी घर पहुंचकर आम के बाग में जाए और देखे कि क्या सचमुच पत्थर की चोट से घोंसला गिर गया था। पता नहीं घोंसले में मौजूद पंछियों के छौनों का क्या हुआ था।
   घर वापस पहुंचे तो पिता ने कहा-‘‘मैं स्टेशन जा रहा हूं, अब दादी के पास ही रहना। कल हम फिर तुम्हारी नन्ही बहन से मिलने चलेंगे।’’
   अजय की आंखें डबडबा आईं-उसने पिता से कुछ कहना चाहा, पर मन की बात होंठों से बाहर नहीं आई। पर पिता उसकी बेचैनी समझ रहे थे। उन्होंने पूछ लिया-‘‘अजय क्या बात है? इतने उदास क्यों हो। तुम अपनी नन्ही बहन को देखकर भी खुश नहीं हुए। बताओ,  क्या बात है? तबीतय खराब है क्या?’’
  अजय ने धीरे से पिता की कलाई थाम ली। उसके होंठों से निकला-‘‘घोंसला...’’
   ‘‘घोंसला क्या... साफ-साफ कहो क्या बात है?’’
   अब अजय चुप नहीं रह सका। वह पिता को आम के बगीचे में घटी पूरी घटना बता गया। अविनाश कुछ पल चुप रहे फिर बोले-‘‘बेटे, यह तो ठीक नहीं हुआ। घोंसला पेड़ से गिरा है तो उसमें मौजूद बच्चों या अंडों का पता नहीं क्या हुआ होगा। चलो चल कर देखते हैं।’’ कहकर वह अजय के साथ आम के बगीचे में पहुंच गए।
   शाम हो चली थी। बगिया में घने पेड़ों के कारण धुंधलका सा हो गया था। घोंसलों की ओर लौटते पंछियों का शोर सुनाई दे रहा था । बाग में और कोई नहीं बस रामभज था।
  उसने अजय को देखा तो बोला-‘‘क्यों फिर आ गए।’’ अजय के जवाब देने से पहले ही अविनाथ ने कहा-‘‘रामभज भैया, आज अजय की नई बहन का जन्म हुआ है। मिठाई कल खिलाएंगे तुम्हें। इस समय तो किसी और वजह से आए हैं यहां।’’
3

घर में बेटी का जन्म हुआ है सुनकर रामभज ने बधाई दी फिर पूछने लगा-‘‘इस समय क्यों आए हो बाबू?’’
   अविनाश ने अजय की ओर देखा फिर रामभज को पूरी बात बता दी। इधर-उधर देखते हुए बोले-‘‘अजय कह रहा है कि इसने अपने दोस्तों को कहते सुना था कि आम नहीं घोंसला गिरा है, पर यहां तो जमीन पर कोई घोंसला कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। हां, टूटी हुई टहनियां और पत्ते जमीन पर पड़े हैं।‘’
  रामभज बोला-‘‘मैंने बच्चों को आमों पर पत्थर फेंकते देखा तो मैं चला आया। मुझे देखते ही सब बच्चे भाग गए। मैंने देखा था जमीन पर पड़ा एक घोंसला।’’
  ‘‘ इस समय कहां है?’’
‘‘मैंने पेड़ पर चढ़कर घोंसले को अच्छी तरह डालियों के बीच टिका दिया है।’’ रामभज ने कहा।
‘‘क्या घोंसले में अंडे या चिडि़या के बच्चे थे?’’ अजय ने डरे-डरे स्वर में पूछा।
‘‘नहीं घोंसले में कुछ नहीं था। लगता है पंछी ने अभी नया घोंसला बनाया है। घोंसले में अंडे या बच्चे मुझे नहीं दिखे। अगर होते तो घोंसला गिरने से अंडे तो जरूर टूट जाते। बच्चे होते तो वे भी मर सकते थे।’’ रामभज बोला।
  अजय को अब सांस आई। फिर भी अपनी आंखों से घोंसले में झांकना चाहता था। उसने रामभज से कहा तो वह मुस्करा उठा। बोला-‘‘पेड़ पर चढ़ना जानते हो तो चढ़ जाओ। मैं बता दूंगा कि घोंसला मैंने पेड़ पर कहां टिकाया है।’’
  अविनाथ ने इनकार में सिर हिला दिया। बोले-‘‘इसे पेड़ पर चढ़ना नहीं आता, मैं जानता हूं. बचपन में खूब चढ़ा हूं पेड़ों पर लेकिन अब तो सब भूल गया हूं।’’
  रामभज कुछ सोचता रहा फिर उसने कहा-‘‘बाबू, आप पेड़ के नीचे खड़े हो जाओ। अजय भैया आपके  कंधे पर खड़ा हो जाए। मैं ऊपर जाकर भैया को चढ़ा लूंगा।’’ अच्छी तरकीब निकाली थी रामभज ने। वह झटपट पेड़ पर चढ़ गया। अविनाथ ने अजय को अपने कंधे पर खड़ा कर लिया। ऊपर से रामभज ने खींच लिया-इस तरह अजय पेड़ पर जा पहुंचा।
   ‘‘कहां है घोंसला?’’ अजय ने पूछा।
4
रामभज ने पत्तों के बीच ऊपर की तरफ इशारा किया-‘’आओ दिखाता हूं। तुम डाल पकड़कर आगे खिसकते रहो। मैं पीछे से संभाले रहूंगा-गिरने नहीं दूंगा।’’
   अजय डाल को दोनों हाथों से मजबूती से थामकर धीरे-धीरे आगे खिसकता रहा। पीछे से रामभज ने थामा हुआ था। फिर दो डालियों के जोड़ पर एक घोंसला दिखाई दिया-‘‘अजय ने देखा छोटा सा घोंसला एकदम खाली था। पेड़ पर दूसरे और भी कई घोंसले थे, जिनसे तरह-तरह की आवाजें आ रही थीं। अब जाकर अजय को तसल्ली हुई कि सचमुच घोंसले में अंडे या बच्चे नहीं थे। वरना अब तक तो वह खुद को अपराधी समझ रहा था। इसके बाद रामभज ने अजय को डाल पर पीछे की तरफ खिसकाते हुए सावधानी से नीचे उतार दिया। नीचे खड़े अविनाथ ने बेटे को संभाल लिया।
  कुछ देर चुप्पी रही। अविनाश ने कहा-‘‘रामभज भैया, आज तुमने बहुत अच्छा काम किया। अजय के हाथों  से एक बड़ा अपराध होते-होते रह गया।’’
   रामभज बोला-‘‘मैं तो बच्चों को यही समझाता हूं कि इस तरह आमों को पत्थर मार कर तोड़ना ठीक नहीं।  इससे घोंसले गिर जाते हैं, पंछी घायल होते हैं, अंडे टूट फूट जाते हैं। बाजार में आम खूब मिलते हैं।’’
  ‘‘तुमने ठीक कहा। इस तरह आम तोड़ने के बारे में नहीं, पेड़ों पर रहने वाले परिंदों  के बारे में सोचना चाहिए।’’ कहकर अविनाश बेटे के साथ घर लौट आए। रास्ते में रुककर अजय फिर से पेड़ की तरफ देखने लगा जो ढलती शाम के धुंधलके में खो चुका था।
  अविनाश ने कहा-‘‘बेटा, घोंसले में रहने वाले पंछियों के छौने बहुत कोमल होते हैं। समझो जैसे अस्पताल में तुम्हारी मां के पास लेटी तुम्हारी छोटी बहन। जरा सोचो, तुम्हारी बहन माँ के पास पलंग पर लेटी है और तब कोई उस पर पत्थर फेंक दे तो क्या होगा? उसे चोट लगेगी, वह घायल हो सकती है और...’’
  ‘‘बस पापा बस......’’ अजय ने रुंधे स्वर में कहा और जोर से अविनाश का हाथ थाम लिया। उसकी उंगलियां कांप रही थीं।
  अविनाथ ने धीरे से उसका कंधा थपथपा दिया। अब अजय से और कुछ कहने की जरूरत नहीं थी। संदेश उस तक पहंच गया था। ( समाप्त )

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