सर्कस का जोकर अब मजदूर बन गया
था ,सर्कस कब का बंद हो चुका था. सिपाही रामभज डेविड से वाही करतब दिखाने को कह रहा
था जो वह सर्कस मैं दिखाया करता था. और फिर...
सड़क पर काम चल
रहा है. सड़क का एक हिस्सा नीचे धंस गया है. शायद नीचे पानी की पाइप लाइन फट गई है.
गड्ढा खोदकर उसे घेर दिया गया है. लोहे के बोर्ड लगा दिए हैं, जिन पर लिखा है-‘ सावधान, आदमी काम पर हैं.’ इसलिए वहां सड़क
संकरी हो गई है. ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए वहां सिपाही रामभज की ड्यूटी
लगा दी गई है. वह खड़ा हुआ कभी हाथ तो कभी डंडे के इशारे से अपना काम करता रहता है.
दोपहर में एक
घंटा काम बंद रहता है. मजदूर खाना खाकर कुछ देर आराम करते हैं. तब रामभज भी वहां
से चला जाता है. एक दोपहर वह लौटा तो देखा एक मजदूर बोर्ड पर कुछ लिख रहा है-‘ आदमी’ शब्द पर कागज चिपका कर उस पर
‘जोकर’ लिख दिया गया था. रामभज ने पढ़ा. –‘जोकर काम पर’ – यह क्या है?’ उसने पूछा.
बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी. जवाब में एक मजदूर ने कहा-‘ मैने सही ही तो लिखा
है, हमारे बीच एक जोकर मौजूद है. ‘ और उसने अपने एक साथी की ओर इशारा किया. रामभज
ने अचरज से उस ओर देखा और हंस दिया. डंडा हिलाते हुए पूछा –‘ क्या सच ?’ जिसे जोकर
कहा गया था वह उठ कर रामभज के पास आ खड़ा हुआ. उसने कहा-‘ जी, पेशे से मैं जोकर
हूँ. लेकिन सर्कस बंद हो गया और मैं बेरोजगार. जब जहाँ जो भी काम मिलता है वही कर
लेता हूँ.’
रामभज कुछ पल
उस मजदूर की ओर अविश्वास के भाव से देखता रह गया जिसे जोकर कहा था उसके एक साथी
ने. छोटे कद और दुबले शरीर वाला वह आदमी कहीं से भी तो सर्कस के जोकर जैसा नहीं लग
रहा था. रामभज ने फिर पूछा –‘ क्या तुम सच में सच कह रहे हो! ‘
“जी.-“- ज़वाब
आया. उस का नाम डेविड था.
रामभज जोर से
हंस पड़ा. बोला-‘ अगर तू जोकर है तो वही करतब दिखा जो सर्कस में दिखाया करता था.
कहीं भूल तो नहीं गया ?’
डेविड चुप खडा
रह गया. कुछ पल ख़ामोशी रही, फिर डेविड ने कहा-‘ भूला तो नहीं हूँ लेकिन काफी दिनों
से दिखाया भी नहीं है.”
‘तो दिखा फिर. मैने बहुत समय से सर्कस देखा भी नहीं है. _”
रामभज ने कहा.
‘लेकिन मेरे पास जोकर की पोशाक तो अब है नहीं.’ डेविड बोला.
‘कोई बात नहीं तू जोकर के करतब दिखा.’_–रामभज हंस रहा था.
डेविड ने
रामभज का डंडा थाम लिया और कुछ देर तक खामोश खड़ा रहा. सबकी आँखें उस पर टिकी थीं.
दोपहर में सड़क पर ट्रेफिक कम था. मजदूरों ने दुबारा काम शुरू नहीं किया था. एकाएक
डेविड ने डंडा हवा में उछाला और फिर लपक कर पकड़ लिया. तब उसके दोनों पैर हवा में
थे. फिर उसने गोल गोल घूमते हुए डंडे को कभी इधर तो कभी उधर उछालते हुए उसे हवा
में अधर रखा और हर बार जमीन पर गिरने से पहले ही दुबारा लपक लिया. वह बड़ी कुशलता से
अपने करतब दिखा रहा था. उसका बदन रबर की तरह लचकीला दिख रहा था. डेविड ने डंडे को
एक बार फिर हवा में काफी ऊपर उछाल दिया और खुद भी उछला उसे हवा में पकड़ने के लिए , फिर न
जाने क्या हुआ – डंडा फुटपाथ पर आ गिरा और डेविड
गड्ढे में.. हवा में एक चीख गूंजी और फिर ख़ामोशी छा गई. शायद उसका संतुलन बिगड़ने
से यह दुर्घटना हुई थी.
डेविड के दो
साथी तुरंत गड्ढे में कूद गए. रामभज भी झुक कर मदद करने लगा. डेविड गड्ढे की तली में
पीठ के बल पड़ा था. उसकी आँखें बंद थीं, चेहरा पीला पड़ गया था.
डेविड को बाहर निकाल कर पटरी पर लिटा दिया गया. वह बेहोश
था. रामभज पछता रहा था कि काश उसने डेविड से खेल दिखाने को न कहा होता. अब तुरंत
कुछ करना था. उसने वहां से गुज़रती हुई एक कार को रोका फिर कई मजदूरों ने डेविड को
सीट पर लिटा दिया. रामभज ने ड्राईवर से हॉस्पिटल चलने को कहा. साथ में डेविड के दो
साथी भी थे. डॉक्टर ने डेविड को देखा और उसे एडमिट कर लिया . डॉक्टर ने कहा कि
डेविड को ठीक होने में कई दिन लगने वाले थे. डॉक्टर ने
दवा
का परचा रामभज को थमा दिया. केमिस्ट की दुकान अंदर ही थी.रामभज वहां जा खड़ा हुआ.
दवाओं का बिल काफी ज्यादा था. रामभज की जेब में उतने पैसे नहीं थे. उसने केमिस्ट
से कहा_ ‘मैं बाकी पैसे अभी लाकर देता हूँ.’ केमिस्ट मान गया. रामभज ने कुछ देर
में पैसे लाकर दे दिए. डेविड का एक साथी रामभज के साथ हॉस्पिटल में ही रहा. रामभज
सोच रहा था कि अब क्या करे डेविड की मां
गाँव में रहती थी. अब जो करना था उसे ही करना था. इलाज महंगा था. लेकिन डेविड को
इस हालत में बेसहारा तो नहीं छोड़ा जा सकता था. डेविड के साथी ने कहा _’ अब क्या
होगा. हम लोगों के पास तो पैसे एकदम नहीं हैं. जिस दिन काम नहीं मिलता तो रोटी भी
मुश्किल हो जाती है.’ रामभज ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया_’ चिंता मत करो. कुछ न
कुछ इंतजाम तो होगा ही. ‘ रात भर वह इसी बारे में सोचता रहा.
सुबह ड्यूटी
से पहले हॉस्पिटल जाकर डेविड का हालचाल लिया. डॉक्टर से बात की . डॉक्टर ने कहा कि
हालत पहले से ठीक है ,पर पूरी तरह ठीक होने में समय लगेगा. डेविड के एक साथी से
रामभज ने हॉस्पिटल में ही रहने को कहा_’ काम की चिंता मत करो, .अभी डेविड की देख
भाल ज़रूरी है. बाकी मैं संभाल लूँगा.’
डेविड की हालत में सुधार देख कर उसे कुछ आराम महसूस हुआ.
वह ड्यूटी पर आ गया. हाथ अपना काम कर रहे थे,
लेकिन मन में विचार घुमड़ रहे थे.आगे क्या होगा अभी इसकी कल्पना मुश्किल थी. लेकिन
इस मुश्किल का हल तो निकालना ही था. तभी दिमाग में एक विचार आया. वह कुछ पल बोर्ड
की ओर देखता रहा_’जोकर काम पर ‘. फिर बढ़ कर नया कागज़ चिपका कर उस पर लिख दिया_
जोकर घायल है. उसे मदद चाहिए. वह सोच रहा था शायद इसे पढ़ कर कोई तो होगा जो जोकर
की मदद कर दे/
यह लिख कर रामभज ड्यूटी में व्यस्त हो गया. तभी
वहां एक कार आकर रुक गई. कार से उतर कर एक आदमी रामभज के पास आया. उसने कहा_’ यह
जोकर का क्या मामला है?’ रामभज ने संक्षेप में पूरी बात बता दी. “ दवाओं की दूकान
मेरी ही है.: उसने कहा. आप वहां आकर मिल लें, मैं मदद करूंगा.” कह कर वह चला
गया.रामभज शाम को ड्यूटी निपटा कर उस आदमी से मिला. उसने डेविड के लिए दवाएं आधी
कीमत पर देने का वादा किया . बोला_’ आप आधी कीमत भी बाद में चुका देना. “
रामभज को इसकी आशा नहीं थी. यह तो चमत्कार ही हो गया था.
एक बड़ी चिंता दूर हो गयी थी. डेविड की तबियत में काफी सुधार हो गया था. कुछ दिन
बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई .वह ख़ुशी का दिन था. डेविड फुट पाथ पर कुर्सी
पर बैठा था.रामभज और डेविड के साथी आसपास खड़े हंस रहे थे. रामभज मिठाई लाया था.
जिस गड्ढे में वह जा गिरा था वह भर दिया गया था. सड़क की मरम्मत हो चुकी थी. डेविड
के साथी कहीं और काम कर रहे थे.
‘’ अब क्या
इरादा है? ‘रामभज डेविड से पूछ रहा था.
‘सोचता
हूँ गाँव चला जाऊं माँ के पास. उन्हें
चिता हो रही होगी.’
हाँ, यही ठीक
रहेगा.’_ रामभज ने कहा. डॉक्टर ने डेविड को कुछ दिन आराम करने की सलाह दी थी. बिना
काम शहर में रूकने का कोई फायदा नहीं था. रामभज उसी दिन डेविड को उसके गाँव छोड़
आया. वह पास ही था. डेविड को सही- सलामत देख कर उसकी माँ बहुत खुश हुई.एक साधारण
झोंपड़ी थी पर साफ़ सुथरी. आगे फूल लगे थे और पीछे फलों के पेड़ और साग; भाजी की क्यारियाँ. डेविड की माँ सब्जी बेच कर गुज़ारा
करती थी. पहले डेविड शहर से पैसे भेज दिया करता था लेकिन सर्कस बंद होने से मुश्किल
बढ़ गई थी.
रामभज समझ गया
कि डेविड को जल्दी ही कोई काम-धंधा करना होगा. चलते समय उसने डेविड से कहा-‘ कुछ
दिन आराम कर लो फिर शहर आ जाना. कुछ तो हो ही जाएगा. ‘ रामभज को तसल्ली थी कि एक
बड़ी आफत दूर हो गई. घर जाकर वह पत्नी को डेविड के बारे में बताने लगा , तभी उसका बेटा
रजत वहां आ गया. डेविड के बारे में सुन कर बोला-‘ पापा, हमारे स्कूल की बस रोज
वहाँ से गुज़रती है जहां बोर्ड पर जोकर के बारे में लिखा हुआ है. हमारी क्लास ने
जोकर भाई के लिए कुछ पैसे जमा किये हैं. हम वह पैसे उन्हे देना चाहते हैं.’
‘ लेकिन उसे
तो मैं अभी-अभी उसके गाँव छोड़ कर आ रहा हूँ.’ पिता की यह बात सुनकर रजत कुछ देर
चुप रहा फिर बोला-‘ तब उन पैसों का क्या करें?’
रामभज समझ
नहीं पा रहा था कि रजत से क्या कहे. अगले दिन स्कूल से लौटने के बाद रजत ने रामभज
को बताया कि प्रिंसिपल सर ने कल उसे मिलने के लिए बुलाया है. अगले दिन रामभज जाकर
रजत के प्रिंसिपल से मिला. उन्होंने कहा-‘ बच्चे गाँव जाकर डेविड से मिलना और उसे
जमा की गई रकम देना चाहते हैं.’
रामभज जानता
था कि डेविड इस तरह दान के पैसे कभी नहीं लेगा. पर उसने कुछ कहा नहीं ,वह बच्चों
की टोली को डेविड के पास ले जाने को तैयार हो गया. प्रिंसिपल ने स्कूल की ओर से बस का प्रबंध कर दिया था. बस डेविड के घर के
सामने जाकर रुकी तो पूरे गाँव में हल्ला मच गया. बच्चों की टोली को देख कर डेविड
और उसकी माँ तो ख़ुशी से जैसे पागल हो गए. डेविड की माँ ने कहा-‘ बच्चों को खिलाने
के लिए घर में तो कुछ है नहीं .’ इस पर रामभज ने कहा-‘ आप कोई चिंता न करें .
बच्चों के पास उनके लंच बॉक्स हैं. आप उन्हें अपने बाग़ के कुछ फल खिला दें.’
बच्चों को डेविड से मिल कर बहुत अच्छा लगा. वे डेविड को पैसे देने को उतावले थे पर
रामभज ने उन्हें मना कर दिया. विदा लेते समय उसने डेविड से कहा –‘ अब तुम ठीक हो
गए हो. शहर आकर स्कूल के बच्चों से मिल लो. कुछ काम भी देखो.’
कुछ दिन बाद
डेविड गाँव से आ गया. रामभज उसे रजत के स्कूल ले गया. प्रिंसिपल ने ‘डेविड से
कहा-‘ हमारे स्टूडेंट्स तुम्हारे सर्कस वाले करतब देखना चाहते हैं.’
डेविड ने
कहा;’ काफी दिन हो गए सर्कस बंद हुए.’
‘ तो क्या हुआ. बच्चों के लिए क्या इतना भी नहीं करोगे.’ कह कर प्रिंसिपल हंसने लगे. आखिर डेविड राजी हो
गया. सर्दी का मौसम था. स्कूल के ग्राउंड पर गुनगुनी धूप बिखरी थी. पूरा स्कूल
वहां जमा था. डेविड के लिए जोकर की पोशाक का बंदोबस्त कर लिया था. जोकर की पोशाक
में डेविड सामने आया तो सब बच्चे तालियाँ बजाने लगे. डेविड को सर्कस के दिन याद आ
गए . वह अपने करतब दिखाने लगा. पूरा ग्राउंड रह रह कर तालियों से गूंजने लगा. बाद
में प्रिंसिपल ने उसे एक लिफाफा दिया. कहा_”;’यह बच्चों की ओर से तुम्हारे लिए है.
‘
डेविड ने तुरंत
लिफाफा लौटा दिया. बोला;’ मैं यह पैसे कभी नहीं ले सकता.’ अब रामभज को अपनी बात
कहने का अवसर मिला. उसने कहा;’ ये पैसे तुम्हारे लिए नहीं हैं. ये हैं तुम्हारी माँ और तुम्हारे मजदूर दोस्तों के
लिए . उन लोगों ने रात दिन तुम्हारी देख भाल की है. क्या उनकी मदद नहीं करोगे?;और अभी हॉस्पिटल के केमिस्ट का
उधार भी चुकाना है.’
प्रिंसिपल ने
कहा-‘ डेविड, इसके लिए तुम्हे कुछ तो करना ही होगा तब फिर यही क्यों नहीं. मैं
कोशिश करूंगा कि दूसरे स्कूलों में भी तुम खेल दिखाओ. अपनी माँ और अपने दोस्तों की
उसी तरह मदद करो जैसे उन्होंने तुम्हारी की है,’ अब कुछ और कहने की जरूरत नहीं थी.
सड़क की मरम्मत
हो चुकी थी. रामभज की ड्यूटी कहीं और लग गई थी,लेकिन जोकर वाला बोर्ड अब भी वहीँ
लगा था, उस पर जोकर की सुंदर ड्राइंग बनी थी. उसके नीचे लिखा था_ धन्यवाद.
====== ( समाप्त ) devendrakumar755@gmail.com
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