Saturday 6 February 2016

बाल कहानी :चिडिया का झूठ

                                                                  चिडिया का झूठ


पड़ोस के घर में सफाई का काम चल रहा था. उमा ने बच्चों से कहा –‘’ आओ हम लोग भी सफाई कर लें. ‘’ फिर दोनों बच्चों- सिमी और रजत के साथ स्टोर से पुराने अख़बारों के कई बण्डल बाहर ले आई. उमा के पति अजय ने कहा-‘’ तराजू भी निकाल लेना क्योंकि कई कबाड़ी तोल में हेराफेरी करते हैं.’’ इसीलिए वह बाज़ार से तराजू खरीद कर लाये थे. उमा ने खोजा पर तराजू कहीं नहीं मिली. कई बार पडोसी तराजू मांग कर ले जाते थे. लेकिन इस समय याद नहीं आ रहा था कि कौन ले गया होगा.
अजय गुस्सा होने लगे. फिर उन्हें कुछ और भी याद आ गया. बोले-‘’ और अपनी अल्मीनियम की सीढ़ी भी नहीं दिखाई दे रही है.’’ सीढ़ी दरवाज़े के पास खडी रहती थी. बगल वाले फ्लैट में काम के दौरान मजदूर कई बार सीढ़ी मांग कर ले जाते थे और फिर वापस रख भी जाते थे. लेकिन आखिरी बार सीढ़ी कौन ले गया था यह उमा को याद नहीं आ रहा था, अजय का गुस्सा और भी बढ़ गया. सब को पता था कि अजय का गुस्सा जल्दी ठंडा होने वाला नहीं.  
उमा ने लंच बॉक्स अजय को देते हुए कहा-‘’ आपको ऑफिस के लिए देर हो रही होगी,  तराजू और सीढ़ी हम दूंढ़ लेंगे. ‘’ अजय चले गए तब बच्चे कुछ सहज हुए. अब उमा भी मुस्करा दी .लेकिन सिमी और रजत को पता था कि शाम का प्रोग्राम ठप हो गया. आज अजय बच्चों को आइस क्रीम खिलाने ले जाने वाले थे. लेकिन अब शायद कई दिन और इंतजार करना होगा.
‘’पता नहीं तराजू और सीढ़ी मिलेंगी भी या नहीं!’’- रजत ने माँ से कहा.  उमा उसके बाल सहलाने लगी जैसे कह रही हों – सब ठीक हो जाएगा. सिमी बोली – ‘’ अगर आज दादी होती तो पल भर में सब ठीक हो जाता .’’
‘’ लेकिन दादी तो तस्वीर में रहती हैं.’’ – रजत ने कहा. उसकी आँखें दीवार पर टंगे दादी के फोटो पर टिकी थीं. बच्चे कई बार देख चुके थे कि कैसे दादी उन्हें मम्मी- पापा के गुस्से से बचाया करती थीं. लेकिन अब क्या होगा – दोनोँ  यही सोच रहे थे. पर कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. जैसे –जैसे शाम निकट आ रही थी बच्चों की घबराहट बढती जा रही थी. अजय आये तो चुपचुप थे यानि तराजू और सीढ़ी की बात भूले नहीं थे. तभी सिमी दादी का एक फोटो लेकर उनके पास चली गई . बोली –‘’ मैं दादी का एक एलबम बना रही हूँ. मुझे आपके बचपन का ऐसा फोटो चाहिए जिसमें आप दादी के साथ खड़े हों.’’
सुन कर अजय के होंठों पर मुस्कान आ गई. बोले- ‘’ मेरे बचपन में आज की तरह फोटो नहीं उतारे जाते थे. तब इक्के दुक्के लोगों के पास कैमरे हुआ करते थे . माँ के साथ मेरे बचपन का फोटो तो शायद न मिले पर बचपन की कई घटनाएं आज भी अच्छी तरह याद हैं.’’
‘’ तब वही सुना दो बच्चों को.’’ – उमा ने कहा. ‘’ वैसे प्रोग्राम तो आइसक्रीम का तय हुआ था.’’ अब अजय खुल कर हंस दिए. बोले-‘’ प्रोग्राम पक्का है.’’ कमरे में हंसी गूंजने लगी,  .तनाव फुर्र हो गया. बच्चों ने अपने पापा को उनके बचपन में पहुंचा दिया था.
अजय सुनाने लगे-‘’ तब हम गाँव में रहते थे. माँ घर के पास वाले कुएं से पानी भरा करती थीं. एक बार माँ की तबीयत खराब थी. घर में पानी नहीं था. मैं बाल्टी-डोर लेकर कुएं  पर जा पंहुंचा , माँ मना करती रह गई. इससे पहले मैंने कभी कुएं से पानी नहीं खींचा था. पर मुझे तो शौक चढ़ा हुआ था. फिर वही हुआ जिसका डर था. बाल्टी कुएं में गिर गई. मैं डर के कारण देर तक घर नहीं गया. लेकिन पिताजी ने मुझे ढूँढ लिया और पकड़ कर घर ले गए, बाल्टी कुएं में गिरने की खबर मुझसे पहले घर पहुंच चुकी थी.
‘’ तब तो दादाजी ने आपको बहुत फटकारा होगा.’’ – सिमी ने पूछा .
‘’ उन्होंने कुछ कहा तो नहीं पर वह इस बात को लेकर परेशान थे कि बाल्टी के साथ अगर मैं भी कुएँ में गिर जाता तो क्या होता? मुझे देखते ही माँ ने मुझे गोद में भर लिया और सर पर हाथ फिराती हुई बोली-‘’ मैं एक नहीं दस नई बाल्टियाँ मंगवा लूंगी. मेरी कसम खा कि फिर कभी कुएं की तरफ नहीं जाएगा.’’ मैने हाँ में गर्दन हिला दी. अब पिताजी को मनाना था,’’-
‘’ उन्हें आपने कैसे मनाया.?’’ – रजत ने जानना चाहा. वह सोच रहा था कि पिता का गुस्सा दूर करने के लिए क्या करना होगा. ‘’ वह भी एक अजीब कहानी है.’’ – अजय ने हंस कर  कहा. सिमी को लगा पापा का गुस्सा धीरे धीरे उतर रहा है.
अजय ने आगे कहा-‘’ कई दिन बीत गए पर पिताजी ने मुझसे बात नहीं की. यही सब सोचता हुआ मैं नदी किनारे बैठा था ,तभी मुझे एक पंख दिखाई दिया. कुछ सोचता हुआ मैं उसे घर ले आया. मैंने उस पर कई जगह हरा और लाल रंग लगा दिया. जब रंग सूख गए तो मैं पंख को पिताजी के पास ले गया. मैंने उनसे कहा-‘’ जरा इस पंख को देखिए .’’ पिताजी ने एक नज़र रंग लगे पंख को देखा और बोले-‘’ इस पर तो रंग लगे हैं. यह क्या तमाशा है. ‘’
मैंने कहा-‘’ नदी के किनारे मुझे ऐसे पंखों वाली चिड़िया दिखाई दी थी. रंग मैंने इसलिए लगाये थे ताकि उसके पंखों के रंग याद रहें.’’ अब पिताजी ने पंख को हाथ में लेकर देखा और बोले –‘’ भई , मैंने तो आज तक ऐसी कोई चिड़िया देखी नहीं. शायद मेरे दोस्त श्याम को कुछ मालूम हो.’’ श्याम चाचा पक्षियों के विशेषज्ञ थे . पिताजी पंख को उनके पास ले गए . मैं भी साथ था, मैंने श्याम चाचा को भी वही कहानी सुना दी. उन्होंने पंख को उलट पलट कर देखा फिर बोले-‘’ ऐसे पंखों वाली चिड़िया तो मैंने भी कभी नहीं देखी लेकिन अगर अजय की बात सच है तो यह एक चमत्कारिक खोज होगी.’’  
‘’ तो आपने झूठ बोला था.’’ रजत ने कहा.
‘’ हाँ, बोला तो था.’’ –अजय ने कहा, ‘’ पर तब पिताजी का गुस्सा दूर करने का कोई उपाय सूझ ही नहीं रहा था. ‘’
‘’ तो आपके पिताजी का गुस्सा दूर हुआ या नहीं?’’ उमा ने पूछा . वह मुस्करा रही थी.
‘’ यह तो पता नहीं पर फिर तो घर में उसी विचित्र चिड़िया की चर्चा होने लगी. कई बार श्याम चाचा भी मुझे साथ लेकर उस चिड़िया की खोज में गये थे. ‘’ और अजय धीरे से हंस दिए.  फिर बोले-‘’ कई बार सोचा कि पिताजी को सच बता दूं. पर हिम्मत न हुई.’’
कुछ देर कमरे में चुप्पी छाई रही. अजय ऑंखें मूंदे कुछ सोच रहे थे,  रजत और सिमी की आँखों के सामने दादी की तस्वीर तैर रही थी. रजत बोला –‘’ दादी के साथ आपके बचपन की तस्वीर ...’’ अजय ने उसका सर सहला दिया. कहा-‘’ इतनी देर से तुम्हारी दादी के साथ अपने बचपन की तस्वीरें ही तो दिखा रहा था.’’ उमा ने कहा-‘’ अब चलिए , नहीं तो आइसक्रीम पिघल जाएगी.’’
‘पापा तो अपने बचपन की गलियों में ही घूम रहे हैं अभी तक.’’ सिमी ने हंस कर कहा.
‘’ बच्चो, बात तो तुम्हारी ठीक है. मेरा एक मन बचपन में है तो दूसरा तुम्हारे पास मौजूद है.’’ कह कर अजय बच्चों के हाथ पकड़ कर आइस क्रीम पारलर की ओर चल दिए. उमा मुस्कराती हुई पीछे पीछे चल रही थीं. दादी ने एक बार फिर बच्चों को उनके पापा के गुस्से से  बचा लिया था.                                        
                                                      ( समाप्त )                       


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