Sunday 24 January 2016

बाल कहानी : एक नया सितारा

                                                   
                 
                                                     एक नया सितारा

मुझे गर्मियों की रातें बहुत अच्छी लगती हैं। इसलिए कि उन दिनों स्कूलों की छुट्टियां होती हैं। सुबह मां की पुकार पर बिस्तर से उठना नहीं पड़ता। और रात में हम देर तक बाबा से कहानियां सुनते रह सकते थे।
जैसे ही दिन ढलता हम यानी मैं और मेरी बहन राधा पानी की बाल्टी लेकर छत पर चले जाते और पानी के छपके मारकर छत को ठंडा करने लगते। पानी सूख जाता तो छत पर बाबा के लिए चटाई बिछा दी जाती। गर्मी के मौसम में बाबा शीतलपाटी पर सोया करते थे। उनके पास ही दूसरी चटाई पर मैं और राधा बैठ जाते। हमें बाबा की प्रतीक्षा रहती। कुछ ही देर में पड़ोस से मुन्नू और रमन भी आ पहुंचते। उन्हें भी बाबा से कहानी सुनना पसंद था। बाबा के छत पर आते ही हम उनसे कहानी सुनाने की फरमाइश करते।
तब बाबा कहते-‘‘तुम लोग कहानी अधूरी छोड़कर नींद के पास चले जाते हो। अब नींद ही कहानी सुनाएगी तुम्हें।’’ कुछ देर तक हां-ना होती रहती ओर फिर बाबा कहानी सुनाने लगते। सुनते-सुनते मैं शीतलपाटी पर लेट जाता और आकाश की ओर ताकने लगता। आकाश तारों से भरा होता और फिर न जाने कब नींद आंखों में आ जाती।
रोज ही ऐसा होता था। लेकिन उस दिन वैसा कुछ नहीं हुआ। उस रात बाबा देर से आए और चुपचाप शीतलपाटी पर बैठ गए। लगा जैसे वह कहानी सुनाने की तैयारी कर रहे हैं। फिर वह लेटकर आकाश में देखने लगे। मैंने कहा-‘‘बाबा, कहानी सुनाओ न।’’
कुछ देर चुप रहने के बाद बाबा ने कहा-‘‘कहानी बाद में, आज पहले तारे गिनेंगे।’’ मैंने आकाश में देखा-हर कहीं तारे बिखरे थे। भला असंख्य तारों को कौन गिन सकता था। राधा बोली-‘‘शायद आपको कहानी याद नहीं है इसीलिए तारों की बात कर रहे हैं।’’
‘‘कहानियां तो अनेक याद हैं मुझे पर आज हम तारे गिनेंगे। इनमें एक नया तारा शामिल हुआ है। चलो शुरू करो।’’ फिर बाबा खुद तारे गिनने लगे- एक, दो, तीन... हम चारों ने भी तारों की गिनती शुरू कर दी-छत पर आवाजें गूंजने लगीं-एक दो, दस, सत्रह...! क्या यह भी कोई कहानी थी। तारे गिनते गिनते कब नींद आ गई, पता न चला।
सुबह आंख खुली तो अभी हल्का अंधेरा था। बाबा शीतलपाटी पर नहीं थे। मैंने ऊपर से आंगन में झांका तो बाबा खड़े दिखाई दिए, फिर वह बाहर दरवाजे की तरफ चले गए। अब वह मुझे दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने राधा को जगाया और फिर हम नीचे जा पहुंचे। मम्मी-पापा एक तरफ बैठे थे, पर बाबा दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने मां से पूछा-‘‘बाबा कहां हैं?’’
‘‘वह गांव गए हैं।’’ पापा ने बताया।
‘‘दो दिन बाद आएंगे।’’ मां बोलीं।
‘‘गांव क्यों गए हैं? वहां तो कोई नहीं है हमारा।’’
‘‘तुम्हारी एक दादी रहती थीं। वह बीमार थीं। इसीलिए गए हैं।’’
‘‘लेकिन हमारी दादी तो यहां हमारे साथ रहती थीं।’’ मैं पूछ रहा था। दो साल पहले दादी हमें छोड़ गई थीं। तब फिर गांव में यह कौन सी दादी थीं जिनके पास बाबा गए थे।
‘‘तुम्हारे दादा की बहन जयवंती जो गांव में ही रहती थीं।’’ पापा ने जयवंती दादी के बारे में कुछ बताया, जो मेरी समझ में नहीं आया। मैंने उन्हें कभी देखा ही नहीं था।
बाबा दो दिन बाद लौट आए। वह कुछ थके-थके लग रहे थे। शाम को मैंने और राधा ने रोज की तरह छत को पानी डालकर ठंडा किया, फिर बाबा के लिए शीतलपाटी बिछा दी। अब आकाश में तारे झिलमिल करने लगे थे। बाबा आकर शीतलपाटी पर बैठ गए। उन्होंने पूछा-‘‘आज कौन सी कहानी सुनोगे?’’
मैंने कहा-‘‘बाबा, आज हम सच्ची कहानी सुनेंगे?’’
‘‘यह सच्ची कहानी कैसी होती है?’’ उन्होंने पूछा।
‘‘जो सच होती है-वैसी कहानी सुनाइए हम जयवंती दादी की कहानी सुनेंगे।’’ हम दोनों ने एक साथ कहा।
बाबा कुछ देर चुप रहे फिर बोले-‘‘तो तुम्हारे पापा ने तुम्हें जयवंती दादी के बारे में बता दिया। हां, दो दिन पहले वह स्वर्ग चली गईं। मैं गांव गया तो सही पर उनका मुंह न देख सका।’’
मैंने कहा-‘‘बाबा, पापा को भी उनके बारे में ज्यादा पता नहीं है। आप ही बताइए उनके बारे में बाबा कुछ देर चुप बैठे रहे फिर कहने लगे-‘‘मैं और जयवंती कई वर्षों तक गांव में रहे। हमारा बचपन साथ-साथ बीता... हम देानों में बहुत प्रेम था। हम सदा साथ-साथ रहते थे। हमारे घर से नदी बस थोड़ी ही दूर थी हम अक्सर खेलते हुए नदी तट पर पहुंच जाते। पिता हम दोनों को वहां जाने से रोकते। कहते नदी में घडि़याल आ गया है। वह मनुष्यों को खा जाता है।
तब जयवंती ने कहा था-‘‘जब घडि़याल हमारी तरफ आएगा तो मैं भैया के सामने खड़ी हो जाऊंगी वह मुझे खाकर ही भैया के पास पहुंच सकेगा। और फिर रोते-रोते उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया।
मैंने कहा-‘‘जयवंती, रो क्यों रही हो। यहां हमारे घर में तो घडि़याल का कोई खतरा नहीं है।’’ यह सुनकर जयवंती हंस पड़ी। जब वह हंस रही थी तब भी उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। कहकर बाबा आंखें पोछने लगे।
मैंने पूछा-‘‘इसका मतलब जयवंती दादी आपसे बहुत प्यार करती थीं।
‘‘हां, वैसे ही जैसे तुम और राधा एकदूसरे से करते हो।’’ कहकर बाबा हंस पड़े। बोले-‘‘एक बार एक सांड जयवंती के पीछे पड़ गया। वह डरकर भागने लगी तो गिर पड़ी। मैं उसके साथ ही था। मैंने जयवंती को अपने पीछे छिपा लिया और सांड पर पत्थर फेंकने लगा। कुछ देर बाद वह मुड़कर चला गया। हम दोनों बच गए।’’
‘‘सांड आपको चोट भी पहुंचा सकता था।’’ मैंने कहा।
‘‘हां, यह तो था पर मैं जयवंती को खतरे से बचाने के लिए कुछ भी कर सकता था।’’
इसके बाद बहुत देर तक मैं और राधा जयवंती दादी के बारे में पूछते रहे और बाबा बताते रहे। बीच-बीच में वह पूछ लेते थे-‘‘जब नींद आए तो बता देना।’’
उस रात हम देर तक बाबा से उनकी बहन जयवंती दादी की बातें सुनते रहे पर नींद हमारे पास तक नहीं फटकी। बाबा ने हमें अपने गांव के बारे में बताया जहां मैं और राधा कभी नहीं गए थे। पर उनकी बातें सुनकर मुझे लग रहा था जैसे मैं उनके साथ उनके गांव की गलियों में घूम रहा हूं। मैंने कहा-‘‘बाबा, मैं आपके साथ जाकर गांव देखना चाहता हूं।’’
‘‘गांव तो जा सकते हैं पर तुम्हारी जयवंती दादी तो अब रही नहीं।’’ बाबा ने उदास स्वर में कहा और आंखें पोंछने लगे।
आकाश में सब तरफ चमकीले तारे बिखरे थे बाबा ने कहा था एक नया सितारा तारों के झुंड में शामिल हुआ है। मैं तारों को देखने लगा-क्या नया सितारा जयवंती दादी थीं। शायद हां, शायद... 

5 comments:

  1. Bhut badhiya Fufa ji. Apki rachnaye bhut sundar h.

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुम बहुत व्यस्त रहती हो, फिर भी तुमने कहानी पढने का समय निकाल लिया. धन्यवाद.

      Delete
  2. Hum apno se kitne hi door kyu naa ho jayen kuch rishte ehsaason se jude hote hain....ek khoobsurat ehsaas se bhari rachna.

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुमने कहानी का मर्म समझा है.मुझे अच्छा लगा.

      Delete