Wednesday 30 December 2015

बाल कहानी : मेरा बस्ता





                                                                    
                                                                      मेरा बस्ता
                                                                     


विनोद और अजय कूड़ा घर में काम कर रहे हैं. दोनों दोस्त हैं. यह दोस्ती किसी स्कूल में नहीं एक कूड़ा घर में शुरू हुई है. दोनों के परिवार नगर के बाहरी हिस्से में एक गन्दी बस्ती में रहते हैं. दोनों के पिता भी कूड़ा घरों में कागज तथा ऐसी चीजें बटोरते हैं जिन्हें कबाड़ वाले को बेच कर कुछ पैसा जुटाया जा सके. यह सिलसिला काफी दिनों से इसी तरह चलता आ रहा है. बाप बेटा बड़े –बड़े बोरे लेकर सुबह मुंह अँधेरे घर से निकल पड़ते हैं. विनोद की मां भी कुछ  घरों में जाकर काम करती है . तब जाकर परिवार के लिए रोटी का जुगाड़ हो पाता है.
अजय ने देखा कि विनोद कूड़े में से कुछ चुन कर एक फटे बस्ते में डालता जा रहा है. उसने पूछा तो विनोद टाल गया, पर अजय ने बस्ते की तलाशी ले ही डाली. उसमे थी मनकों की एक माला ,एक लाल रिबन, हेयर पिन का एक पत्ता और एक फटी हुई किताब. अजय ने पूछा –  ‘’तो स्कूल की तैयारी है?’’  विनोद ने कहा कि बहन माँ से रिबन के लिए पैसे मांग रही थी और माँ मनकों की माला चाहती है. फिर उसने बस्ते को पास खड़ी वैन के हैंडल से लटका दिया और काम में जुट गया. कुछ देर बाद जो वैन की तरफ देखा तो सन्न रह गया. वैन वहां नहीं थी. ‘अरे वैन कहाँ चली गई? ‘ सोचने लगा- अब माँ से क्या कहेगा, मन उदास हो गया. कुछ देर चुप बैठा रहा फिर काम में लग गया. शाम को घर गया तो चुप चुप था. कहता भी क्या. रात में नींद नहीं आई पर सुबह रोज के समय पर पिता के साथ बोरा लेकर निकल पड़ा. कूड़ाघर में उसके हाथ काम कर रहे थे पर आँखें उधर ही लगी थीं जहाँ कल वैन खड़ी थी. कुछ देर बाद उसने वैन को आते देखा. वह तुरंत उस तरफ भाग चला. वैन के रुकते ही उसने ड्राइवर से कहा -‘ कल आप मेरा बस्ता अपने साथ क्यों ले गए.’
ड्राइवर वैन से बाहर निकला और विनोद को देख कर बोला -- ‘ तो तुम्हारा है वह बैग ?’
‘ हाँ, मेरा है वह बस्ता.’- विनोद बोला.
‘मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था,’- ड्राइवर ने कहा. ‘ घर जाकर देखा तो एक फटा बस्ता हैंडल से लटक रहा था.
‘ लाओ मेरा बस्ता दो मुझे.’ – विनोद बोला.
‘ वह तो घर पर है. आओ मेरे साथ चलो. ‘ – कह कर ड्राइवर ने वैन का दरवाज़ा खोल दिया. विनोद को कुछ डर लगा. क्या इस अनजान आदमी के साथ जाना ठीक होगा? उसने  सोचा लेकिन फिर अजय का हाथ थाम कर वैन में बैठ गया. कुछ देर बाद वैन एक मकान के सामने रुक गई. दोनों ड्राइवर के पीछे अंदर चले गए. दरवाज़े से होकर आँगन में पंहुंचे . विनोद और अजय ने देखा कि वहां कई बच्चे पढ़ रहे थे. ‘ क्या यह स्कूल है?’ विनोद ने अजय से पूछा  जवाब उसने दिया जो दोनों को वहां लेकर आया था-‘ हाँ, यह स्कूल ही है. तुम चाहो तो पढ़ सकते हो यहाँ.’’
‘’ लेकिन हम...’’ विनोद  आगे कुछ नहीं कह सका .
‘’ हाँ तुम दोनों इन बच्चों जैसे हो और ये सब भी तुम जैसे हैं. पहले ये भी तुम्हारी तरह कूड़ा घरों में काम करते थे . पर अब उस तरफ झांकते भी नहीं. ‘’ कह कर उसने अपना परिचय दिया. उसका नाम रमन था . वह एक संस्था चलाता था.  कूड़ा घरों में काम करने वाले बच्चों को उस गंदगी से हटा कर उनकी पढाई का इंतजाम करता था,
विनोद और अजय पढ़ते हुए साफ़ सुथरे बच्चों को एकटक देखते रहे. दोनों एक ही बात सोच रहे थे – क्या हम भी इन जैसे बन सकते हैं? अपने गंदे हाथ पैरों और मैले कपड़ों पर लज्जा आ रही थी.
रमन उनके मन की बात जान गया. पत्नी निशि से कहा तो वह उन दोनों को बाथ रूम में ले गई. कहा-‘ तुम हाथ मुंह साफ़ कर लो . में तुम्हारे बदलने के लिए कपडे ले आती हूँ. ‘’ निशि ने अजय और विनोद को अपने बेटे श्याम के कपडे ला दिए और कहा-‘ ये शायद कुछ बड़े हैं तुम दोनों के लिए , बस आज भर की बात है. ‘’ अजय और विनोद ने कपडे बदल लिए . अब उन्हें अच्छा लग रहा था. रमन ने कहा-‘ आओ अब चाय पीते हैं ,फिर तुम्हें घर छोड़ आऊंगा.’’ दोनों ने निशि और रमन के साथ बैठ कर चाय पी. ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी ने उनके साथ इतना अच्छा व्यवहार किया था.
रमन दोनों को वैन में बैठा कर उनके घर जा पंहुंचा . विनोद और अजय के घर पास पास थे. दोनों के माता पिता अजय और विनोद के इस तरह बिन कहे काम को बीच में छोड़ कर चले जाने से परेशान थे. दोनों के लौट आने से उन्हें तसल्ली हो गई. पर उन्हें नए कपड़ों में और साफ़ सुथरा देख कर हैरान रह गए. रमन ने कहा-.’ हैरान न हों. इन दोनों का कायाकल्प हो गया है. अब आप लोगों की बारी है.’’ और फिर उसने पूरी बात विस्तार से समझा दी.
विनोद्  के पिता ने कहा –‘’ आपकी बात तो ठीक है पर हमारा घर कैसे चलेगा?’’
‘’ उसका इंतजाम भी हो जाएगा .’’ रमन ने कहा. फिर दोनों परिवारों से वैन



‘में बैठने को कहा. रमन दोनों परिवारों को एक नई जगह ले गया. वहां एक बड़े कमरे में कई स्त्री पुरुष काम में जुटे थे . दो औरतें सिलाई मशीनों पर काम कर रहीं थीं. फर्श पर बैठे कई लोग तरह तरह की चीजें बना रहे थे. एक आदमी लकड़ी के खिलौने पर पॉलिश कर रहा था . विनोद का पिता उसके पास बैठ गया और ध्यान से कुछ देर देखता रहा फिर रमन से बोला – ‘’मेरे बापू लकड़ी के बहुत अच्छे खिलौने बनाया करते थे. पूरे गाँव में मशहूर था उनका नाम.   उनकी मौत के बाद मैं शहर चला आया फिर कब कूड़ा घर में पहुँच गया पता ही न चला.’’
‘’ आप फिर से शुरू कर  सकते हैं.’’-रमन  बोला.
विनोद की माँ ने कहा-‘’ सिलाई तो मुझे भी आती है पर मशीन खरीदने के पैसे कभी न जुटे.’’
रमण ने कहा –‘यहाँ  सब इंतजाम है. आप अपना मनचाहा काम कर सकती हैं.’’
‘’लेकिन सारा दिन तो कूड़ाघर में बीत जाता है. ‘’- अजय के पिता ने कहा.
‘’ लेकिन कूड़ा घर में तो अब जाना नहीं है. न आप लोगों को और न आप के बच्चों को’. आप लोग यहाँ काम करेंगे और बच्चे हमारे पास पढाई .’’-  रमन बोला. ‘’ आप चारों यहाँ ट्रेनिंग लेंगे और फिर काम शुरू होगा.’’
अजय और विनोद के माता पिता को रमन ने अच्छी तरह समझा दिया. वे चारों सारा दिन वहीँ रहकर लोगों को काम करते देखते और सीखते रहे. शाम को रमन ने दोनों परिवारों को कुछ पैसे दिए तो वे बोले –‘’ हमने तो कुछ किया ही नहीं.’’ तब रमन ने कहा –‘’ आप लोग रोज कमाते हैं तब घर में रोटी बनती है. आज तो कुछ कमाया नहीं. मैं तो थोड़े ही पैसे दे रहा हूँ. जब ट्रेनिंग के बाद काम शुरू कर देंगे तो ज्यादा मिलने लगेंगे.’ फिर उन्हें बताया कि बाज़ार में उनकी संस्था की एक दुकान है जहाँ इन सामानों को बेचा जाता है. ‘’ हम खरीदारों                             
 को बतलाते हैं कि इन चीजों को किन लोगों ने बनाया है. तब वे जरूर लेते हैं’’
इसके बाद रमन उन को अपने घर ले गया. पत्नी निशि से मिलवाया. निशि ने कहा-‘’ आप लोग बच्चों की चिंता न करें. हम बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर रहे हैं. बाद में उन्हें स्कूल में दाखिल करवा देंगे. लेकिन एक शर्त है कि आप लोग या आपके बच्चे फिर कभी कूड़ा घर में काम नहीं करेंगे.’’
‘’ कभी नहीं.’’- उन चारों ने एक साथ कहा . उस रात विनोद और अजय के घर में किसी को नींद नहीं आयी; उन्हें कूड़े के दानव से मुक्ति मिल गई थी. ( समाप्त )

2 comments:

  1. Kya sach mein aise log hote hai doosron ki madad karne waale....asli jeevan to yahi hai doosron ke kaam aana.

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  2. निश्चय ही ऐसे लोग होते हैं. तुम्हारे मन में भी ऐसा भाव जरूर है.

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