जादूगर
सबको पता है उधर से नहीं जाना है। पूरी काॅलोनी के बच्चे एक-दूसरे को बता रहे हैं-अरे देखो, उधर से मत जाना। काॅलोनी के बीच में छोटा-सा बाग है। बाग के चारों ओर पक्की सड़क बनी हुई है। बाईं ओर वाली सड़क के बीचोंबीच एक टोकरा उल्टा रखा है। बच्चे बाग में काम करते हुए माली के पास जाकर बार-बार पूछते हैं, ‘‘माली भैया, उस टोकरे के नीचे क्या है?’’
माली जवाब
देता-देता परेशान हो गया है। वह बार-बार कहता है, ‘‘कोई उस टोकरे को न छुए। शाम को यहां जादू का खेल दिखाया
जाएगा। जादूगर खुद आकर इस टोकरे को उठाएगा और फिर जादू दिखाएगा।’’
अब बच्चे शाम को
होने वाले जादू के खेल के बारे में बातें कर रहे हैं। सब एक-दूसरे को बता रहे हैं
कि शाम को काॅलोनी में जादू का खेल होगा।
तभी एक ठेले वाला
अपने ठेले पर सामान लादकर लाया। उसने अपनी जेब से पते वाला परचा निकालकर माली से
पूछा। माली ने सामने वाले मकान की ओर संकेत करके बता दिया कि उस घर में जाना है।
ठेले वाले ने सामान पहुंचा दिया फिर खाली ठेला ढकेलता हुआ बाहर की तरफ लौट चला।
उसने भी पार्क के पास वाली सड़क पर उल्टा पड़ा टोकरा देखा। ठेले वाला रुक गया। वह
सोच रहा था, ‘इस टोकरे के नीचे
क्या है?’
तभी दो बच्चे
वहां से गुजरे। उन्होंने ठेले वाले से कहा, ‘‘उस तरफ मत जाना। उस टोकरे को मत छूना। शाम को जादूगर इस
टोकरे के नीचे से खरगोश निकालकर दिखाएगा। तुम भी आना जादू का खेल देखने के लिए।’’
ठेले वाला टोकरे
के पास ही जमीन पर बैठकर पसीना पोंछने लगा। पेड़ की छाया भली लग रही थी। तभी उसके
कानों में हल्की-सी आवाज आई। ठेले वाले ने देखा-आस-पास कोई परिंदा नहीं था,
तब फिर आवाज कैसी थी। कहीं आवाज इस टोकरे के
नीचे से तो नहीं आ रही है, जो सड़क पर औंधा
रखा हुआ है।
ठेले वाले ने बाग
में पेड़ की छाया के नीचे लेटे माली की ओर देखा। उससे पूछा, ‘‘क्यों भैया, इस टोकरे के नीचे क्या है?’’ उसे बच्चों की बात याद थी कि शाम को जादूगर इस टोकरे के
नीचे से कोई अजीब चीज निकालेगा।
माली ने ठेले
वाले को इशारे से पास बुलाया, खुद पेड़ की छाया
में लेटा रहा। बोला, ‘‘बच्चों की बातें!
क्या कहू। मैंने एक बार जादूगर का नाम क्या ले दिया, बस तभी से पूरी बस्ती के बच्चे ‘जादू का खेल’ और ‘जादूगर’ चिल्लाते घूम रहे हैं।’’ और धीरे से मुस्कराया।
‘‘जादूगर, जादू का खेल।’’ ठेले वाला बुदबुदाया। उसने भी कई बार बचपन में जादू के खेल
देखे थे, लेकिन वह सब तो पुरानी
बात हो गई थी। आजकल तो सारा दिन ठेला खींचना पड़ता था। मन में आया-अगर शाम को जादू
का खेल होगा तो वह भी देखेगा।
माली फिर हंसा।
उसने कहा, ‘‘अरे कैसा जादू!
यह तो मैंने बच्चों से वैसे ही कह दिया। अब पछता रहा हूं कि क्यों कहा।
थोड़ी-थोड़ी देर में पूछने आ जाते हैं, ‘कब आएगा जादूगर! कब दिखाएगा खेल?’ असल में सड़क पर एक मरा हुआ कबूतर पड़ा है। जब मैं काम पर आया तो मैंने देखा
उसे। आज सफाई वाला आया नहीं। इसलिए मैंने टोकरे से ढक दिया ताकि किसी का पैर न पड़
जाए।’’
ठेले वाले को याद
आया उसने टोकरे के नीचे से हल्की-सी आवाज
सुनी थी। उसने कहा, ‘‘माली भैया,
मुझे लगता है कबूतर मरा नहीं। जरा चलकर तो
देखो।’’
‘‘जाओ जी, अपना काम करो। हमने खुद अपनी आंखों से देखा था
मरा हुआ कबूतर। यों पंख फैलाए पड़ा था। पंखों पर खून के धब्बे थे। वह एकदम मरा हुआ
था, तभी तो मैंने टोकरे से ढक
दिया उसको।’’ माली ने तेज आवाज
में कहा और फिर आंखें मूंद लीं। वह नहीं चाहता था कि मरे हुए कबूतर के बारे में
ठेले वाला कोई और बात करे। शायद बच्चों के जवाब देता-देता परेशान हो चुका था।
लेकिन ठेले वाले
को तसल्ली नहीं हुई। वह जाकर फिर से सड़क पर औंधे पड़े टोकरे के पास बैठ गया। उसने
कान लगाए तो हल्की-सी आवाज फिर सुनाई दी। यह भ्रम नहीं था। ठेले वाले ने झपटकर
टोकरा उठाया तो उसके नीचे पड़ा कबूतर दिखाई दिया। हां, उसके पंखों पर खून लगा था, पर वह एकदम मरा नहीं था। उसके एक पंख रह-रहकर कांपता तो
जमीन से टकराकर हल्की-सी आवाज होती। ठेले वाले के कानों ने घायल कबूतर का पंख जमीन
से टकराने की वही हल्की-सी आवाज सुन ली थी।
ठेले वाले ने
हौले-से कबूतर को उठा लिया। माली को पुकारा, ‘‘अरे भाई, कबूतर मरा नहीं
जिंदा है। जल्दी आओ।’’
माली झटके से उठा
अैर दौड़त हुआ वहां आ गया। घायल कबूतर ठेले वाले के हाथों में हौले-हौले हिल रहा
था। माली अचरज से आंखें फाड़े देखता रह गया। ठेले वाले ने घायल कबूतर को माली के
चेहरे के एकदम सामने कर दिया। बोला, ‘‘लो खुद ही देख लो। इसे तुमने मरा कहहर टोकरे से ढककर छोड़ दिया था।
माली को अपनी
आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसने कहा,‘‘सच कहता हूं भैया, सुबह जब मैंने इसे देखा था तो यह मरा हुआ था।’’
‘‘तो क्या यह जादू
के जोर से जिंदा हो गया?’’ ठेले वाले ने
व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा,‘‘अच्छा, बाकी बातें बाद में, पहले पानी लाओ।’’
माली दौड़ा हुआ
गया और एक बरतन में पानी ले आया। ठेले वाले ने कपड़े के टुकड़े को पानी में भिगोया
फिर घायल कबूतर की चोंच खोलकर बूंद-बूंद पानी मुंह में डालने लगा। पानी पीकर कबूतर
में जैसे नई ताकत आ गई। वह पहले के मुकाबले अधिक तेजी से पंख फड़फड़ाने लगा। ठेले
वाले ने गीले कपड़े से धीरे-धीरे उसके पंखों पर लगा खून पोंछ दिया। अब कबूतर का
पूरा शरीर हिल रहा था, शायद उसके घावों
में तकलीफ हो रही थी।
माली ने कहा,
‘‘ओ ठेले वाले भाई!यह कबूतर बस थोड़ी देर का
मेहमान है। इसे आराम से वहीं पड़ा रहने दो।’’
ठेले वाले ने
दोनों हाथों में घायल कबूतर के संभालते हुए कहा, ‘‘यह बच भी सकता है। और मैं इसकी जान बचाने की पूरी कोशिश
करूंगा।’’
‘‘लेकिन...’’
माली कहता-कहता रुक गया। ठेले वाला घायल कबूतर
को संभाले हुए ठेले के खींचता हुआ वहां से चल दिया। उसने माली की ओर बिना देखे कहा,
‘‘मैं नहीं जानता कि कैसे क्या होगा, पर मैं इसे मरने नहीं दूंगा।’’
माली गुमसुम खड़ा
रह गया, फिर धीरे-धीरे चलकर पेड़
के नीचे जा बैठा। उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। वह बड़बड़ाया,
‘‘मरा हुआ कबूतर फिर से जिंदा कैसे हो सकता है।
क्या यह कोई जादू था।’’
धूप हल्की हुई तो
बच्चे घरों से निकल आए। सड़क पर पड़े टोकरे के पास घेरा बनाकर खड़े हो गए। वे माली
से पूछने लगे, ‘‘जादूगर कब आएगा
माली भैया!’’ बच्चे बार-बार एक
ही बात दोहरा रहे थे।
माली कुछ देर चुप
रहा, फिर बोला, ‘‘जादूगर आया था। वह जादू का खेल दिखाकर चला गया।’’
‘‘चला गया!’’
बच्चों ने चकित स्वर में पूछा।
माली चुप खड़ा था।
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